भटकती आत्मा भाग - 8
भटकती आत्मा भाग – 8
घनघोर जंगल, रात का सन्नाटा, चंद्रदेव रश्मि की अमृत धारा वसुधा पर उँड़ेल रहे थे। बस्ती के समस्त प्राणी का मन मयूर स्वप्नाकाश में उमड़ती नींद-घटा को देखकर सुध बुध खो बैठा था। लेकिन दो प्राणी पर्वत के एक शैल खंड पर बैठे प्रेमालाप लाभ में निमग्न थे।
" माइकल हम पापा को चकमा देकर यहां आया है"।
मनकू - "मैं भी आने का कोई उपाय ना देख कर सोने का बहाना किया, और सबके सो जाने पर यहां आ गया हूं"।
" कब तक होगा ऐसा माइकल"?
" जब तक हम चाहेंगे"।
"एक दिन पापा को बताना पड़ेगा डियर"।
मनकू - ऐसा मत करो मैगनोलिया, क्योंकि तुम्हारे पिता हमारे प्रेम को पसंद नहीं करेंगे"।
"अपना बेटी का खातिर उनको मानना पड़ेगा डियर माइकल"।
मनकू - "नहीं तुम्हारे पिता कभी नहीं मानेंगे ऐसा मुझे विश्वास है मैगनोलिया"।
" ठीक है जब तुम मना करता तब नहीं बोलेगा लेकिन एक न एक दिन तो कहना ही पड़ेगा"।
"हां, जब मुझे विश्वास हो जाएगा तब तुम उनसे बात करना"।
"डियर माइकल, हम तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता है"।
मनकू - "मैं भी नहीं रह सकता डियर, मैं मर जाना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हारी जुदाई बर्दाश्त नहीं कर सकता"।
" मरने का नाम मत लो डियर" - कहती हुई मैगनोलिया मनकू से लिपट गई। मनकू ने भरपूर चुंबन दे डाला उसके कपोलों, आंखों और बाँहों पर। आंखों को पलकों की छांव में किए दोनों पता नहीं कब तक उस मुद्रा में स्थिर रहे। उनकी तंद्रा तब भंग हुई जब उल्लू की कर्कश आवाज परिवेश में आंदोलित हुई।
मनकू ने कहा - "जाओ मैगनोलिया, मुझे छोड़ने का मन तो नहीं करता है तुम्हें, लेकिन समाज का डर भी है"।
" नहीं डियर कुछ देर और रहो इतनी भी जल्दी क्या है"।
मनकू - "तुम्हें अपने पापा का डर नहीं है"?
"नहीं वो शराब पीकर ऐसा सोते हैं कि सवेरे नौ बजे से पहले नींद नहीं टूटती"।
मनकू - " ओह यह तो बहुत अच्छा है। अच्छा मैगनोलिया यह तो बताओ अन्य अंग्रेजों की तरह तुमको मुझसे घृणा तो नहीं हो जाएगी"?
" क्या मतलब"?
मनकू - अंग्रेज भारतीयों को ब्लैकमैन कह कर नाक भौं सिकोड़ते हैं। तुमको मैं कैसा लगता हूं"?
टोम ... टोम मुझे बहोत अच्छा लगता है। काला होते हुए भी मुझे टोमसे बहोत प्यार है"।
मनकू - "कभी घृणा तो नहीं दोगी मुझे"?
" नहीं डियर माइकल,हम कबी घृणा नहीं कर सकता टोमसे। इससे पहले हम मर जाना अच्छा समझेगा। हम टोमको प्यार करता हय, हरदम करता रहेगा"।
रजनी अपना यौवन खो चुकी थी। चंद्रदेव भी अब थक चुके थे, तारों की टोलियां खामोश थीं। मनकू का इशारा पाकर मैगनोलिया भारी कदमों से उठ खड़ी हुई। दोनों अनचाहे मन से अलग-अलग पथ की ओर बढ़ने लगे।
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कीचड़ से लथपथ विस्तृत क्षेत्र। चारों तरफ ग्रामीण युवक और युवतियों की भीड़।धान के बिहन यत्र-तत्र बिखरे पड़े थे। खेतों में बिहन लगाने का उपक्रम वे लोग कर रहे थे। गांव की यह विशेषता थी कि सभी ग्रामीण सभी लोगों के खेतों में बिहन मिलजुल कर लगा दिया करते थे। इसी प्रकार घर बनाना हो तो सभी लोग एकजुट होकर मदद करते थे। आज भी किसी ग्रामीण के खेत में बिहन लगाना था l ग्रामीण युवक युवतियों के साथ मनकू और जानकी भी थे। एक एक कर सब खेत में उतर गये। कुछ लोग बिहन पहुंचाने लगे। पहाड़ी गीत कभी ऊंचे और कभी नीचे स्वर में गूंज उठा। सभी युवतियां एक टोली में थीं, और सभी युवक दूसरी टोली में। वे बिहन लगाते जा रहे थे और गीत का स्वर गूंज रहा था।
तभी किसी दिशा से घोड़े पर सवार होकर मैगनोलिया पहुंच गई उस स्थान पर। सभी लोगों की निगाहें उस से टकरा गईं। घृणा की रेखा खींच गई उनके बीच। मैगनोलिया उनकी भावनाओं से बेखबर होकर उतर गई घोड़े से। कैमरा को कंधे पर से उतार लिया उसने और इस मनोहर दृश्य का चित्र अपने कैमरे में बंद कर लिया। मनकू ने चोर दृष्टि से उसे देखा।
"एक्सीलेंट वंडरफुल" कहती हुई मैगनोलिया ने कैमरा को लापरवाही से एक ओर उछाल दिया और कूद पड़ी खेत में। कुछ बिहन हाथ में ले खेतों में लगाने लगी। गीत का स्पष्ट स्वर वह बोल नहीं पा रही थी, फिर भी उल्टा सीधा राग अलापने लगी। कुछ देर के बाद गीत बंद हो गया, परंतु मैगनोलिया गाये जा रही थी। युवक और युवतियों की उपेक्षापूर्ण निगाहें उस से टकराई और उसके अटपटे गीत पर हंस पड़े सब लोग। मनकू से न रहा गया, उसने कहा -
"एक अंग्रेज युवती प्रेम पूर्वक साथ देने आई और तुम लोग उसकी हंसी उड़ाने लगे, यह अच्छी बात नहीं है"।
मैगनोलिया उनकी उपेक्षा को ना जान पाई थी। उसने मनकू की आवाज पहचान लिया और उसके निकट चली गई। दोनों धीरे-धीरे कुछ बातचीत करने लगे। उधर युवकों और युवतियों में कानाफूसी होने लगी। किसी ने कहा लगता है दोनों एक दूसरे को बहुत दिनों से जान जानते हैं।दूसरे ने कहा - "अरे क्यों नहीं जानेंगे एक दिन ऊपर पर्वत पर यह गिर पड़ी थी, और मनकू भैया दौड़े हुए चले गए थे बचाने। मुझे तो पूछने पर उन्होंने ही कहा था"।
"ओह दाल में काला लगता है"।
" लगने दो भाई, अगर दोनों बात कर रहे हैं तो तुमको ईर्ष्या क्यों होने लगी"?
जानकी को उनकी गुपचुप बातचीत अच्छी ना लगी, फिर भी धीरज से काम लिया उसने।
एक ने जोर से कहा - "क्या बात है भैया क्या कह रही है यह"।
मनकू ने हंसते हुए कहा - "यह कह रही है कि गांव के लोग बहुत अशिष्ट हैं, विदेशियों के साथ अच्छा सलूक करना नहीं जानते"।
"अच्छा, यह लोग कितने सलूक वाले होते हैं"।
जानकी ने अब बोलना उचित समझा। वह डपट कर बोली - "तुम लोग उसे क्यों भला बुरा कह रहे हो , वह अच्छे मन से मदद करने आई और तुम लोग गलत समझ रहे"।
मनकू ने हंसते हुए कहा -
"हां जानकी देखो न मैं समझा रहा हूं इन्हें। इनको गलतफहमियां हो गई हैं हम लोगों के प्रति"।
जानकी ने कहा - "नहीं बहन यह लोग तेरी बेतकल्लुफी से विचलित हो गए थे, इसलिए ऐसा कहा था" l
"व्हाट" मैगनोलिया ने कहा।
" यह नहीं समझ पा रही है तुम्हारी बात, मैं समझा दे रहा हूं"।
फिर वह घूमा मैग्नोलिया की ओर – "देखो मैगनोलिया हम उसी जगह मिलेंगे शाम को, अब तुम जाओ"|
कान में फुसफुसाकर कहा मनकू ने l
मैगनोलिया घोड़े पर चढ़कर चली गई l
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